"मेरे अज़नबी"

क्यूँ अज़नबी होकर भी,
दिल के करीब हो तुम I
क्यूँ इक ख्वाब बनकर,
मन के करीब हो तुम I

कुछ सोचता हूँ जब भी
कुछ चाहता हूँ जब भी
आ जाता है नज़र क्यूँ
चेहरा तुम्हारा
क्यूँ ऐसा लगता है,
मेरे हबीब हो तुम I


क्यूँ देखता हूँ तुझमें मैं जीवन की खुशियाँ
क्यूँ देखते ही तुमको भर आती हैं अँखियाँ
तुम अज़नबी हो फिर क्यूँ
तुम्हे खोने का डर है
क्यूँ ये महसूस होता,
मेरे पल पल मे हो तुम I


क्यूँ तन्हाई मे साथ चाहूं तुम्हारा
क्यूँ लगता है तुम बिन ना जीना गंवारा
मैं बेचैन होता क्यूँ
देखकर तुमको औरों संग
क्यूँ प्यार करने लगा हूँ मैं तुमसे,
क्यूँ बनके धड़कन दिल मे बसे हो तुम I




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