इक बार सोचता हूँ,
ज़िंदगी क्या है
रिश्ते क्या हैं
फिर ठहर जाता हूँ
शून्य में देखता हूँ
फिर सोचता हूँ,
हम घिर चुके हैं
नीचे वसुधा है
ऊपर अंबर है
जाएँ तो जाएँ कहाँ
फिर ठहर जाता हूँ
कुछ सकुचाता हूँ
डर के घबराता हूँ
फिर सोचता हूँ,
आकाश तो पिता है
धरती तो माता है
ये कैसा नाता है
अनंत की छाव में
पृथ्वी की गोद में
इक बेटे के प्राण को
यमराज लेके जाता है
ये कैसा नाता है
फिर ठहर जाता हूँ
पीरा से भर जाता हूँ
मन को समझाता हूँ
फिर सोचता हूँ,
मिट्टी का तन है ये
मिट्टी में मिलने को
प्राणों की खुशबू है
ईश्वर से जुड़ने को
माता पिता ने बनाई जो सृष्टि है
बेटे को भेजा है
शोभा बढ़ाने को
फिर ठहर जाता हूँ
संतुष्टि से भर जाता हूँ
शून्य में देखता हूँ
और देखता ही जाता हूँ,
ज़िंदगी क्या है
रिश्ते क्या हैं
फिर ठहर जाता हूँ
शून्य में देखता हूँ
फिर सोचता हूँ,
हम घिर चुके हैं
नीचे वसुधा है
ऊपर अंबर है
जाएँ तो जाएँ कहाँ
फिर ठहर जाता हूँ
कुछ सकुचाता हूँ
डर के घबराता हूँ
फिर सोचता हूँ,
आकाश तो पिता है
धरती तो माता है
ये कैसा नाता है
अनंत की छाव में
पृथ्वी की गोद में
इक बेटे के प्राण को
यमराज लेके जाता है
ये कैसा नाता है
फिर ठहर जाता हूँ
पीरा से भर जाता हूँ
मन को समझाता हूँ
फिर सोचता हूँ,
मिट्टी का तन है ये
मिट्टी में मिलने को
प्राणों की खुशबू है
ईश्वर से जुड़ने को
माता पिता ने बनाई जो सृष्टि है
बेटे को भेजा है
शोभा बढ़ाने को
फिर ठहर जाता हूँ
संतुष्टि से भर जाता हूँ
शून्य में देखता हूँ
और देखता ही जाता हूँ,
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